रविवार, 12 अप्रैल 2009

रंगों की गंध...रंगों के व्यवहार....
डॉ. मंजूषा गांगुली
हमारी यादों से जुड़ी होती है रंगों की गंध। चौंकिये नहीं... जी हां सुगंध भरे रंग और उन रंगों से जुड़ी हुई हमारी स्मृतियां इनका बेहद गहरा संबंध हमारे जीवन में होता है। यह गंध तीव्र, मृदु मधुर और मोहक तो होती है बल्कि मादक भी होती है। कैसे? ... आइये जानते हैं- इन रंगों को...
जहां श्वेत रंग से देव गृह की गंध आती है। वहीं पीले नीले गुलाबी और नारंगी रंग मादक होते हैं गहरा हरा तीव्र गंधी तो सफेदी लिये पीला (क्रीम रंग) सौम्य गंधी होने का आभास दिलाता है। जामूनी, सुनहरा और भूरा रंग विक्षिप्त होते हैं।
ताम्रवर्णी रंग से तीक्ष्ण और कस्तूरी के समान गंध का स्त्रवन होने का आभास होता है। यानि कि यह गंध, नाद और उनकी दृक संवेदनाओं में से महसूस होने वाले स्पर्श आदि सभी हमारी स्मृतियों से चिरकाल संबंधित होते हैं! इसी कारण जिस संस्कृति ने हमें पाला पोसा होगा, उस संस्कृति से भी इन समूचे रंग संस्कारों का संबंध है।
हम यदि शांति से सुन सकें तो हमसे रंग बातचीत करने लगते हैं। फीके रंग फुसफुसाते हैं। मध्यम रंग बहुत सा कुछ बता जाते हैं। तेजस्वी रंगों का कोलाहल वहां होता है। एक ही गहरा रंग यदि प्रमुख रूप से केनवस पर धीमे- धीमे फैलाया जाए तो वह सागर की मानिंद गंभीर ध्वनि का निर्माण करता है। हल्के रंग मंद- मंद बहने वाली बयार की तरह हुंकार देते महसूस होते हैं। रंग गाते भी हैं। जल्लोश भी वे करते हैं और कभी कभी ‘मूक’ रहकर रंग सुनते भी हैं। रंगों में से संगीत का सनातन ‘सा’, शांति का मूलभूत नाद भी प्रवाहित होता रहता है। इस संगीत को निर्मित करने वाले रंग को आँखों से सुना जाना चाहिये। रंगों का आक्रोश देखते- देखते सुनाई हेता है।
भिन्न भिन्न रंगों के व्यवहार एक दूसरे से नितांत जुदा होते हैं। उनका स्वभाव भिन्न होता है। जैसे पीला रंग सहज सुंदर, स्वागत भरा तो है ही साथ ही वह किसी भी रंग में सहज ही मिल जाता है। उसके साथ ही वह उस रंग का व्यक्तित्व समग्ररूप से बदल भी देता है। ‘नीला रंग ’ ठंडी तासीर लिये होता है। लेकिन बेहद जिद्दी.... उका सभी से मेल होगा यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन जिससे इसकी दोस्ती होगी उसे वह अपना कर ही लेता है। इसके बावजूद अपने अस्तित्व पर जरा भी आंच नहीं आने देता।
तांबई ‘भूरा’ रंग मर्दानी बाना रखता है, वह जहां भी होगा वहां उसी का राज होता है। ‘लाल’ रंग निष्ठुर, गर्वीला लेकिन अत्यंत सरल, प्रामाणिक रंग है। लाल रंग को वैसे तो एडजस्टमेंट मान्य नहीं होती।हरा, भूरा और काला रंग स्वभाव से जरा विचित्र होते हैं। नसवारी भूरा और काला ये रंग अत्यंत शकी (शक करने वाले) होते हैं। वही हरा रंग अड़ियल और ईष्यालु होता है। गुलाबी, नारंगी ये रंग सौम्य होते हैं, बल्कि जिनके साथ होते हैं उन्हीं की मर्जी से व्यवहार करने वाले होते हैं। जामुनी रंग उग्र और थोड़ा सा एकांत प्रिय, मतलबी और बेपरवाह होता है। काई जैसे हरे रंग पीछे रहने वाले रंग होते हैं, कम बोलने वाले भी इन्हें कह सकते हैं। श्वेत रंग होता है सौम्य, प्रसन्न व्यक्तित्व वाला साथ ही अतिशय प्रामाणिक लेकिन अपनी धाक रखने वाला। इस श्वेत रंग से सभी का समान रिश्ता होता है। उतनी ही निकटता लेकिन धमक भी उतनी ही।
पीला रंग सभी रंगों का जनक है। इसीलिये वह सभी रंगों को समेट लेता है। श्वेत रंग के आगे सभी रंग नतमस्तक हो जाते हैं। अंधकार यह उनकी जननी है। श्वेत रंग के मानिंद ही काला रंग भी प्रत्येक रंग की चिंता करता है। गहरी रंगतें काले रंग से ही जन्मती हैं। चित्र में नजर आने वाले केवल काला अंधकार अनेक रंगों को अपने पंखों के नीचे छुपाकर धीरे- धीरे एक एक रंग को उजागर करता अपना समृद्ध स्वरूप प्रकट करता है। रंगों का यह रहस्य कृष्ण वर्ण में संग्रहित है।
मूलभूत तीन रंग लाल, नीला और पीला जब एक दूसरे का सहारा लेते हैं तो अनेक रूपों में प्रकट होते हैं। किसी भी रंग का उत्साह उनकी शुद्ध अवस्था में ही होता है। देखा जाए तो सभी रंग मूलत: सुंदर शुद्ध होते हैं लेकिन शुद्धता, सौंदर्य आदि उनके आसपास के रंगों पर निर्भर करती है। रंगों की सुसंगति उनका रहस्य उनकी माया अगाध है। रंगों का जादू जबर्दस्त होता है। रंग भ्रम पैदा करते हैं रंगों का अंतरंग बाहिरंग उनका क्रोध उनकी विधि छटाएं उनकी मृदुता उनका उतावला स्वभाव, घन गंभीर स्वभाव अचंभित करता है तो कहीं उनकी वैराग्य भरी तटस्थता... सभी कुछ मायावी खेल ही लगता है।
रंगों की गिनती असंभव है। तभी तो आकाश के रंग, पृथ्वी के रंग, विविध वृक्षों, पत्तियों, पशु पक्षियों और मनुष्य के रंग, समुद्र के गहरे रंग, पर्वतों, हरी घास पर हिलते नन्हें- नन्हें रंग, तितलियों के पंखों के रंग कण, त्वचा के मृदु मुलायम रंग, वर्षा की धाराों से झिरते रंग, विविध प्राणियों के केशओं (रोम) के रंग, सर्पों के कुल के रूपहले रंग, केले के फूल के रंग पक्षियों की ग्रीवा और पंखों के रंग... ये सभी रंग चित्रकार को आव्हान देते हैं। इन्हें देख पाना हर एक के बस की बात नहीं है। इसलिये चित्र जगत में रंग एक अतिशय महत्व का संस्कार है। रंग यह एक संस्कृति है। रंग की यदि पहचान किसी को हो जाये अथवा समझ में आ जाए तो निश्चित ही उसे अनपेक्षित परिणाम और उनकी विराट हस्ती का अनुभव तत्काल हो जाएगा। रंग विहीन जीवन की कल्पना कभी की जा सकती है क्या? रंगों के अभाव में हमारे एक भी स्वप्न की पूर्ति हो ही नहीं सकती... शायद आप भी यह मान रहे होंगे.....


2
सिन्धी कविता
कौन हूं मैं?
आईने में नजर आता यह चेहरा
मेरा नहीं है।
बरसों से एक साधारण जिंदगी जीती मैं?
शायद
वह भी मैं नहीं हूं
मैं कौन हूं?
रात की गहरी खामोशी में
बेचैनी से करवटें बदलते
अंधेरे में चारों ओर निहारते
मेरे भीतर उठता है वह सवाल
मुझे आज तक नहीं मिला है
जिसका जवाब
न मैं सिन्ध मैं पैदा हुई हूं
न मैंने देखी है सिन्ध
फिर अपने बारे में सोचने पर क्यों महसूस होती है
सिन्ध की जमीन की खुश्की
धूसर आसमान की उदासी?
जैसे
पूरनमासी के चांद की ओर निहारता है सागर
वैसे ही
मेरे विचारों का ज्वार
धुकधुका देता है मुझे
तेज हो जाता है मेरे रक्त का प्रवाह भुरभुराने लगती हूं मैं अपने आप
कभी- कभी
मैं चाहती हूं
मेरे रक्त में बहती सिन्धु नदी की तेज धारा
समेट ले मुझे अपने आप में
जला दे भले ही अपनी उस आग में
जिसकी लपटों से भयभीत होते थे सिंध के निवासी
या मेरा भुरभुराता वजूद भी
बन जाये मोअन जोदड़ों का हिस्सा
न मैं सिन्धु नदी का प्रवाह हूं
न मोअन जोदड़ों का कोई हिस्सा
न ही समायी है मुझमें
शाह लतीफ की किसी नायिका की आत्मा
फिर
किससे बिछड़ा है मेरा वजूद?
कौन हूं मैं?

रश्मि रमानी

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