वीना जैन
उज्जैन यूनिवर्सिटी से फाइन आर्ट में एम ए। ललित कला अकादमी दिल्ली, पार्लियामेंट एनेक्सी, दिल्ली, कोलकाता, नेहरूसेंटर मुंबई,इंडियन अकादमी आॅफ फाइन आर्टस आदि में कला प्रदर्शनियां एवं कलाकृतियों का चयन।
वीना जैन से रवीन्द्र स्वप्निल की बातचीत
आपके चित्रों में गांव बड़ी उजास के साथ आया है? भोपाल में रहते हुए आप गांव से कैसे जुड़ी हैं?
गांव मेरे लिए अनजाने नहीं रहे हैं। मेरा जन्म उज्जैन का है और मैं अपने नाना नानी के यहां अक्सर गांव जाया करती थी। उस समय को बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। करीब पच्चीस साल पहले की यह बात है। उस समय गांव मेरी चेतना में आया था। आज जो गांव है वह वैसा न है और न ही रहा है। अब गांव बहुत बदल गया है। मेरे नाना का गांव भी बदल चुका है। उनका सौंधापन गायब है। इन सालों में मैंने देखा है कि गांव और शहर का अंतर खत्म हो चुका है। वहां अब सब कुछ वैसा ही है जैसा शहर में है।
आज आपके लिए अपने नाना का गांव क्या मायने रखता है
मैं आज भी अपनी ननिहाल के गांव की उस खुश्बू को महसूस करती हूं। उसे अपने जीवन में स्वीकार करती हूं और देखती हूं, कला में उसे पाने की कोशिश करती हूं।
आपके लिए आपका काम क्या है?
इसे बताना एक कठिन काम है लेकिन मैं अपने आसपास से अपने परिवेश से बहुत ही गहराई से जुड़ा महसूस करती हूं। मैं जो भी अपने चारों तरफ देखती हूं वह मेरी कला का हिस्सा हो जाता है। मेरे बचपन में आया हुआ गांव मेरे बहुत ही करीब है। मेरी कलात्मक चेतना के निर्माण में उसका बहुत योगदान है।
आपके जो चित्र यहां प्रदर्शित हो रहे हैं उनकी रचनात्मकता को अपने कैसे सहेजा?
मेरे इन चित्रों में गांव बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर आया है। गांव के बहुत से प्रतीक और सिंबल यहां हैं। मैंने उन्हें स्मृति के रूप में सहेजा है। दूसरी बात ये है कि इन चित्रों के सृजन में मैंने किसी भी तरह का सिंथेटिक कलर का इस्तेमाल नहीं किया है। सारे चित्र चाय, वनस्पति और दूसरे रंगों को मेल से बनाए गए हैं।
आधुनिक कला में इन चित्रों को तकनीकी स्तर पर मान्यता मिलेगी ? तकनीकी स्तर पर प्रयोग किए गए रंगों को फेड होने या खराब होने का डर हो सकता है।
ये रंग खराब या फेड नहीं होंगे। मैंने इनका परीक्षण किया है। इसके अलावा तकनीकी रूप से भी इनको संरक्षित किया गया है। आज कल पेंटिंग्स की दुनिया में तकनीक बेहद एडवांस हो चुकी है। फंगस आदि से बचाने के लिए इन चित्रों पर एक खास प्रकार का पेस्ट किया गया है।
आपकी रंग योजना में पीला सुनहारापन बहुत अधिक है इसका क्या कारण है?
इन चित्रों का बैकग्राउंड है गांव है। गांव की जो उजास होती है, जो सुनहरापन वहां धूप का बिखरता है वह यहां है। गांव का जीवन ही धूप और मिट्टी का जीवन है। यही सब इन चित्रों में है। वैसे कहीं कहीं आप इन चित्रों में धूसर रंग का पुट भी देख सकते हैं।
आप आजकल नया क्या कर रही हैं?
अभी जो चित्र मैंने बनाए हैं वे पेपर पर हैं अब आगे उनको कैनवस पर लाने का प्रयास कर रही हूं। पेपर की अपनी सीमाएं हैं जबकि कैनवस आपको अलग तरह का स्पेश देता है।
रविवार, 12 अप्रैल 2009
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