सोमवार, 18 मई 2009

मैंने इश्क की कीमत

ये कविता को मै ग़ज़ल का तमगा नही पहनना चाहता हूँ। मेरी ग़ज़ल लिखने की कुव्वत नही है। दूसरी बात ये है की अब हिन्दी कविता को अपने आस्पास को ख्याल मै लेकर कविताई करना होगी... मै ये प्रयास कर रहा हूँ कि ... अपने कवि मित्रो से भी आग्रह कर रहा हूँ.....कि आइये हिन्दी कविता को us लय की तरफ़ ले चलें...जिसमे आधुनिकता बोध और रंजकता एक साथ हों..
आपका
रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति


मैंने इश्क की कीमत चुका दी
जिंदगी मोहब्बत की रियासत में मिला दी

जरा गौर से देख कर पहचान लो
मैंने इक किरण सूरज में मिला दी

जो बात मैं कह नहीं सका अभी तक
उसे मैंने तुम्हारी आवाज में मिला दी

तुम्हें पुकारता हूं मेरा दिल झील हो गया है
प्यार के किनारों पे तुम्हारी कमी खलती है

1 टिप्पणी:

  1. यह किसने कह दिया तुमसे कि हर गज़ल में लय होती है । हम लोग जो कवितायें लिखते हैं लय तो उसकी एक शर्त है ही ।

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