मंगलवार, 9 जून 2009
आसमां
मैं आसमाँ ले के आया था
तुमने बाहों को फैलाया ही नहीं
मैं रातभर सितारे बनता रहा
तुमने पलकों को उठाया ही नहीं
क्या शिकायत कि शाम नहीं देखी
तुमने खिड़की का परदा हटाया ही नहीं
कोई चेहरा मायूस नहीं था यहाँ
तुमने किसी के लिए मुस्कुराया ही नहीं
सर तो हजार झुके थे शहर में
किसी सर को तुमने झुका समझा ही नहीं
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