शुक्रवार, 20 मार्च 2009
लड़की भूल जाती है
लड़की कागज रख कर भूल जाती है
जैसे शाम दिन को भूल जाती है
उसके हाथों का कागज धूप का टुकड़ा है
लड़की धरती पर धूप का टुकड़ा भूल जाती है
मेरी दुनियायी समझाइशों पे हंस कर
लड़की अपना गम भूल जाती है
सीखती नहीं दुुनिया जमाने के फसाने
आंखों में आंसू सजा कर सब भूल जाती है
सदस्यता लें
संदेश (Atom)